क्या सफलता का रास्ता सिर्फ कॉलेज की चार साल की डिग्री से होकर गुजरता है? दशकों से हमारे समाज में यही धारणा थी। लेकिन अब हवा का रुख बदल रहा है। आज का युवा एक महत्वपूर्ण सवाल पूछ रहा है: क्या लाखों रुपये खर्च करके और सालों तक पढ़ाई करके मिली डिग्री वाकई उस लायक है?
यह सवाल एक बड़ी शैक्षणिक क्रांति को जन्म दे रहा है। एक तरफ जहां पारंपरिक कॉलेजों में एडमिशन के लिए पहले जैसी मारामारी कम हो रही है, वहीं दूसरी ओर ट्रेड स्कूलों, वोकेशनल कोर्स और स्किल-बेस्ड ट्रेनिंग सेंटर्स (जैसे ITI और पॉलिटेक्निक) में युवाओं की भीड़ बढ़ रही है। यह सिर्फ एक ट्रेंड नहीं है, बल्कि सफलता, शिक्षा और करियर को देखने का एक बिल्कुल नया नजरिया है।
क्यों टूट रहा है कॉलेज की डिग्री से विश्वास?
कॉलेज की चमक फीकी पड़ने के पीछे कई ठोस कारण हैं:
- आसमान छूती फीस: कॉलेजों की सालाना फीस लाखों में है, जिसमें हॉस्टल, किताबें और अन्य खर्चे शामिल नहीं हैं।
- एजुकेशन लोन का बोझ: कई छात्र पढ़ाई पूरी करने के लिए लोन लेते हैं और नौकरी मिलने से पहले ही कर्ज के भारी बोझ तले दब जाते हैं।
- नौकरी की कोई गारंटी नहीं: डिग्री हाथ में आने के बाद भी एक अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी मिल ही जाएगी, इसकी कोई गारंटी नहीं है। बहुत से ग्रेजुएट या तो अपनी फील्ड से अलग काम कर रहे हैं या कम सैलरी पर समझौता कर रहे हैं।
ट्रेड स्कूल: हुनर से सफलता तक का फास्ट-ट्रैक रास्ता
ट्रेड स्कूल या वोकेशनल कोर्स, पारंपरिक शिक्षा का एक स्मार्ट विकल्प बनकर उभरे हैं। ये किसी खास करियर पर केंद्रित होते हैं और थ्योरी से ज़्यादा प्रैक्टिकल ट्रेनिंग पर जोर देते हैं।
- अवधि: ये कोर्स आमतौर पर 6 महीने से 2 साल के होते हैं।
- फोकस: इनमें कंस्ट्रक्शन, इलेक्ट्रीशियन, प्लंबिंग, ऑटो मैकेनिक, वेब डेवलपमेंट, डिजिटल मार्केटिंग, हेल्थकेयर असिस्टेंट और कुलिनरी आर्ट्स जैसे सीधे जॉब देने वाले हुनर सिखाए जाते हैं।
- फायदे: कम फीस, कोई कर्ज नहीं और कोर्स खत्म होते ही नौकरी के बेहतरीन अवसर। कई संस्थान तो “सीखते-सीखते कमाने” (Apprenticeships) का मौका भी देते हैं, जिससे छात्र ट्रेनिंग के दौरान ही पैसा कमाना शुरू कर देते हैं।
आज की युवा पीढ़ी (Gen Z) क्यों चुन रही है यह राह?
इस बदलाव की अगुवाई आज की युवा पीढ़ी कर रही है। एक सर्वे के मुताबिक, 42% युवा अब व्हाइट-कॉलर जॉब्स की जगह स्किल-बेस्ड करियर को प्राथमिकता दे रहे हैं। उनके लिए प्रतिष्ठा से ज़्यादा स्थिरता, प्रैक्टिकल अनुभव और कर्ज-मुक्त जीवन मायने रखता है।
सोशल मीडिया भी इसमें एक बड़ी भूमिका निभा रहा है। टिकटॉक और यूट्यूब पर ऐसे कई क्रिएटर्स हैं जो अपनी वेल्डिंग, प्लंबिंग या कोडिंग की स्किल्स दिखाकर यह साबित कर रहे हैं कि “ब्लू-कॉलर” जॉब्स में न केवल अच्छी कमाई है, बल्कि गर्व और संतुष्टि भी है।
कौन से ट्रेड कोर्स हैं सबसे ज़्यादा डिमांड में?
- हेल्थकेयर: नर्सिंग असिस्टेंट, मेडिकल लैब टेक्निशियन जैसे कोर्स हमेशा डिमांड में रहते हैं।
- स्किल्ड ट्रेड्स: प्लंबर, इलेक्ट्रीशियन, वेल्डर और AC मैकेनिक की मांग हर शहर और कस्बे में है।
- डिजिटल स्किल्स: वेब डेवलपमेंट, डिजिटल मार्केटिंग और ग्राफिक डिजाइनिंग आज के डिजिटल युग की सबसे ज़रूरी स्किल्स हैं।
- ऑटोमोटिव रिपेयर: गाड़ियों की संख्या बढ़ने के साथ ही कुशल मैकेनिक की ज़रूरत भी बढ़ी है।
- हॉस्पिटैलिटी और कुलिनरी: होटल मैनेजमेंट और शेफ बनने के कोर्स भी युवाओं को खूब आकर्षित कर रहे हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)
1. कॉलेज में एडमिशन क्यों घट रहे हैं?
बढ़ती फीस, एजुकेशन लोन का बोझ और डिग्री के बाद नौकरी की अनिश्चितता इसके मुख्य कारण हैं।
2. क्या ट्रेड स्कूल, कॉलेज से सस्ते होते हैं?
हाँ, बिल्कुल। ट्रेड स्कूल के कोर्स कम समय के होते हैं और उनकी फीस पारंपरिक कॉलेजों की तुलना में बहुत कम होती है।
3. क्या ट्रेड स्कूल से अच्छी सैलरी मिलती है?
हाँ। कई स्किल्ड प्रोफेशनल्स शुरुआत में ही ₹30,000 से ₹50,000 महीना कमाते हैं और अनुभव के साथ उनकी सैलरी लाखों में पहुंच सकती है।
4. क्या ये नौकरियां ऑटोमेशन (मशीनों) से सुरक्षित हैं?
हाँ। जिन कामों में हाथ का हुनर लगता है, जैसे प्लंबिंग या इलेक्ट्रिकल काम, उन्हें मशीनों से बदलना बहुत मुश्किल है। इसलिए ये करियर काफी सुरक्षित माने जाते हैं।
अंतिम विचार
कॉलेज की डिग्री का महत्व खत्म नहीं हुआ है, लेकिन अब यह सफलता का एकमात्र रास्ता भी नहीं रहा। ट्रेड स्कूलों का उदय यह बताता है कि समाज अब हुनर और प्रैक्टिकल ज्ञान को पहले से कहीं ज़्यादा सम्मान दे रहा है। यह एक ऐसा बदलाव है जो युवाओं को कर्ज के बोझ से निकालकर एक आत्मनिर्भर और स्थिर भविष्य की ओर ले जा रहा है।thumb_upthumb_down